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युद्ध और अहिंसा


क़ायम रहें, नहीं तो उसे छोड़ दें क्योंकि ऐसा न होने पर तो वह कायरता का ही दूसरा नाम है, और जिन हथियारों को उन्होंने स्वेच्छा से छोड़ रखा है उन्हें फिर से ग्रहण कर लें।

डा० बेनेस को मैं यही अस्त्र पेश करता हूँ, जो कि दरअसल कमजोरों का नहीं, बहादुरों का हथियार है; क्योंकि मन में किसी के प्रति कटुता न रखकर, पूरी तरह यह विश्वास रखते हुए कि आत्मा की सेवा और किसी का अस्तित्व नहीं रहता, दुनिया की ताकत के सामने, फिर वह कितनी ही बड़ी क्यों न हो, घुटने टेकने से दृढ़तापूर्वक इंकार कर देने से बढ़कर कोई वीरता नहीं है।

'हरिजन-सेवक'ː १५ अक्तूबर, १९३८