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बड़े-बड़े राष्ट्रों के लिए अहिंसा

चेकोस्लोवाकिया पर लिखे गये मेरे हाल के लेखोंपर जो आलोचनाऍ हुई, उनमें से एक का जवाब देना है।

कुछ आलोचकों का कहना है कि चेकों को मैंने जो उपाय सुझाया वह तुलनात्मक रूप से कमजोर है; क्योंकि वह चेकोस्लोवाकिया जैसे छोटे राष्ट्रों के लिए ही है, और इंग्लैण्ड, फ्रांस या अमेरिका जैसे बड़े राष्ट्रों के लिए नहीं, तो उसका कोई महत्व भी हो तो भी वह अधिक मूल्यवान नहीं है।

लेकिन मैंने बड़े राष्ट्रों को जो यह बात नहीं सुझाई इसका कारण उन देशों का बड़ा होना, या दूसरे शब्दों में मेरी भीरुता तो है ही, पर इसकी एक और खास वजह है। बात यह है कि वे मुसीबतजदा नहीं थे और इसलिए उन्हें किसी उपाय की भी जरूरत नहीं थी। डाक्टरी भाषा में कहूँ तो वे चेकोस्लोवाकिया की तरह रोगग्रस्त नहीं थे। उनके अस्तित्व को चेकोस्लोवाकिया का कोई खतरा नहीं था। इसलिए महान् राष्ट्रों से मैं कोई बात कहता तो वह भैस के आगे बीन बजाने' जैसा ही निष्फल होता।