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बड़े-बड़े राष्ट्रों के लिए अहिंसा


चेकों को मैं अहिंसात्मक उपाय प्रहण करने के लिए न कहूँ तो यह मेरी कायरता होगी; क्योंकि ऐसे करोड़ों आदमियों के लिए जो अनुशासन-हीन हैं और अभी हाल में पहले तक उसके आदी नहीं थे, जो बात अन्त में शायद असम्भव साबित हो, वह सम्मिलित रूप से कष्ट-सहन के लायक छोटे और अनुशासनयुक्त राष्ट्र के लिए सम्भव हो सकती है। मुझे ऐसा विश्वास रखने का कोई हक नहीं है कि हिन्दुस्तान के अलावा और कोई राष्ट्र अहिंसात्मक कार्य के उपयुक्त नहीं है। अब मैं जरूर कबूल करूंगा कि मेरा यह विश्वास रहा है और अब भी है कि अहिंसात्मक उपाय द्वारा अपनी स्वतन्त्रता फिर से प्राप्त करने के लिए हिन्दुस्तान ही सबसे उपयुक्त राष्ट्र है। इससे विपरीत आसारों के बावजूद, मुझे इस बात की उम्मीद है कि सारा जनसमुदाय जो कांग्रेस से भी बड़ा है, केवल अहिंसात्मक कार्य को ही अपनायेगा; क्योंकि भूमण्डल के समस्त राष्ट्रों में हमीं ऐसे काम के लिए सबसे अधिक तैयार हैं। लेकिन जब इस उपाय के तत्काल अमल का मामला मेरे सामने आया तो चेकों को उसे स्वीकार करने के लिए कहे बिना मैं न रह सका।

मगर बड़े-बड़े राष्ट्र चाहें, तो चाहे जिस दिन इसको अपनाकर गौरव ही नहीं बल्कि भावी पीढ़ियों की शाश्वत कृतज्ञता भी प्राप्त कर सकते हैं। अगर वे या उनमें कोई विनाश के भय को छोड़कर नि:शस्त्र हो जायें तो बाकी सबके फिर से अक्लमन्द बनने में वे अपने आप सहायक होंगे। लेकिन उस हालत में इन बड़े-बड़े राष्ट्रों को साम्राज्यवादी महत्वकांक्षात्रों तथा भूमण्डल के