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यहूदियों का सवाल

मेरे पास ऐसे कई पत्र आये हैं, जिनमें फ़िलस्तीन के अरबयहूदी प्रश्न पर तथा जर्मनी में यहूदियों पर होनेवाले जुल्म के बारे में मुझसे अपने विचार प्रकट करने के लिए कहा गया है। बड़ी मिमक के साथ मैं इस पेचीदा मवाल पर अपने विचार प्रकट करने का साहस करता हूँ।

यहूदियों से मेरी सहानुभूति है। दक्षिण अफ्रीका में उनके साथ मेरा निकट का सम्बन्ध रहा है। उनमें से कुछ तो मेरे जिन्दगीभर के साथी ही बन गये। इन मित्रों के द्वारा ही मुझे उन जुल्म-ज्यादतियों का बहुत-कुछ पता लगा, जो लम्बे अर्से से इन लोगों को मेलनी पड़ रही हैं। ये तो ईसाइयों में अकृत बने हुए हैं। ईसाइयों के द्वारा इनके साथ होनेवाला बर्ताव बहुत कुछ उसी तरह का है जैसा कि सवर्ण हिन्दू अस्पृश्यों के साथ करते हैं। धर्म का सहारा, इस अमानुषिक बर्ताव के लिए, दोनों ही जगह लिया गया है। इसलिए यहूदियों के प्रति मेरी सहानुभूति का कारण उस मित्रता के अलावा यह एक सामान्य बात भी है।