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जर्मन आलोचकों को गांधीजी का जवाब

['हरिजन' में प्रकाशित गांधीजी के “यहूदियों का सवाल" शीर्षक लेख की हाल में जर्मनपत्र 'नाशोसगाबे में जर्मनी के एक लेखक ने जो आलोचना की है, उसके जवाब में गांधीजी ने 'स्टेट्समैन' के संवाददाता को नीचे लिखा विशेष संदेश दिया है-सं०]

यहूदियों के प्रति जर्मनों के बर्ताव के बारे में मैंने जो लेख लिखा था उस पर जर्मनी ने जो रोष जाहिर किया है उसके लिए, यह बात नहीं कि, मैं तैयार नहीं था। यूरोप की राजनीति के बारे में अपनी अज्ञानता तो मैं खुद ही स्वीकार कर चुका हूँ। पर यहूदियों की बहुत-सी मुसीबतों को दूर करने के अर्थ उन्हें अपना उपाय सुझाने के लिए यूरोपियन राजनीति के सही ज्ञान की मुझे जरूरत भी नहीं थी। उनपर तो जुल्म हुए हैं, उनके बारे की मुख्य हकीकतै बिल्कुल निर्विवाद हैं। मेरे लेख पर पैदा हुआ रोष जब दब जायगा, और खामोशी छा जायगी, तब अत्यन्त ऋद्ध जर्मन को भी यह मालूम हो जायगा कि मेरे लेख की तह में जर्मनी के प्रति मित्रता की ही भावना थी, द्वष की हर्गिज नहीं।

क्या मैंने बार-बार यह नहीं कहा है कि विशुद्ध प्रेम-बन्धत्व