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क्या अहिंसा बेकार गयी?


व्यक्तियों का कष्ट-सहन बेकार साबित हुआ है। उन्होंने अपने स्वाभिमान को कायम रखा है और यह साबित कर दिया है कि उनकी श्रद्धा किसी भी कष्ट-सहन से विचलित नहीं हो सकती। हेर हिटलर के दिल को पिघलाने के लिए वे काफी साबित नहीं हो सके, इससे केवल यही जाहिर होता है कि हेर हिटलर का दिल पत्थर से भी अधिक कठोर चीज़ का बना हुआ है। मगर, सख्त-से-सख्त दिल भी अहिंसा की गर्मी से पिघल जायगा और इस हिसाब से अहिंसा की ताकत की तो कोई सीमा ही नहीं।

हरेक कार्य बहुत-सी ताकतों का परिणाम होता है, चाहे वे एकदूसरे के विरुद्ध असर करनेवाली ही क्यों न हों। ताक़त कभी नष्ट नहीं होती। यही हम मैकेनिक्स की किताबों में पढ़ते हैं। मनुष्य के कामों में भी यह उसी तरह से लागू है। असल में बात यह है कि एक मामले में हमें आम तौर पर यह मालूम होता है कि वहाँ कौन-कौन-सी ताकतें काम कर रही हैं और ऐसी हालत में हम हिसाब लगाकर उसका नतीजा भी पहले ही से बता सकते हैं। जहाँतक मनुष्य के कामों का ताल्लुक है, वे ऐसी मुख्तलिफ ताकतों के परिणाम होते हैं, कि जिनमें से बहुत-सी ताकतों का हमें इल्म तक नहीं होता।

लेकिन हमें अपने अज्ञान को इन ताकतों की क्षमता में अविश्वास करने का कारण नहीं बनाना चाहिये। होना तो यह चाहिये कि अज्ञान के कारण हमारा इसमें और भी ज्यादा विश्वास हो जाये। चूंकि अहिंसा दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है और