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युद्ध और अहिंसा


काम भी यह बहुत छुपे ढंग से करती है, इसलिए इसमें बहुत भारी श्रद्धा रखने की जरूरत है। जिस तरह हम ईश्वर में श्रद्धा रखना अपना धर्म समझते हैं, उसी तरह अहिंसा में श्रद्धा रखना भी धर्म समझना चाहिये।

हेर हिटलर केवल एक आदमी ही तो है और उनकी जिंदगी एक औसतन आदमी की नाचीज जिंदगी से बड़ी नहीं है। अगर जनता ने उनका साथ देना छोड़ दिया, तो उनकी ताकत एक नष्ट ताकत होगी। मानव-समाज के कष्ट-सहन का उनकी तरफ से कोई जवाब न मिलने पर मैं निराश नहीं हुआ हूँ। मगर, मैं यह नहीं मान सकता कि जमैनों के पास दिल नहीं है, या संसार की दूसरी जातियों की अपेक्षा वे कम सहृदय हैं। वे एक-न-एक दिन अपने नेता के खिलाफ विद्रोह कर देंगे, अगर समय के अन्दर उसकी आँखे न खुली और जब वे ऐसा करेंगे तब हम देखेंगे कि पास्टर नीमोलर और उसके साथियों की मुसीबतों और कष्ट-सहन ने जागृति पैदा करने में कितना काम किया है।

सशस्त्र संघर्ष से जर्मन हथियार नष्ट किये जा सकते हैं, पर जर्मनी के दिल को नहीं बदला जा सकता, जैसा कि पिछले महायुद्ध में हुई हार नहीं कर सकी। उसने एक हिटलर पैदा किया, जो विजयी राष्ट्रों से बदला लेने पर तुला हुआ है। और यह बदला किस तरह का है? इसका जवाब वही होना चाहिये जो स्टीफेन्सन ने अपने उन साथियों को दिया था, जो गहरी खाई को पाटने से हताश हो गये थे और जिससे पहले रेलवे का निकलना