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युद्ध और अहिंसा


माँग का प्रतिनिधित्व करने का मुझे अधिकार नहीं, और मैंने ऐसा किया, तो दुर्गति होगी । इतनी बात मैंने वाइसराय महोदय को भी बता दी थी । ऐसी स्थिति में मुझसे समझौता या समझौते की बातचीत का कोई सवाल ही नहीं हो सकता। मुझे यह मालूम नहीं हुआ कि उन्होंने मुझे समझौते की बातचीत के लिये बुलाया है । मैं वाइसराय महोदय के स्थान से खाली हाथ लौटा हूँ। मुझसे स्पष्ट या गुप्त कोई समझौता नहीं हुआ । अगर कोई समझौता होगा, तो वह कांग्रेस और सरकार के बीच होगा ।

कांग्रेस-सम्बन्धी अपनी स्थिति को वाइसराय महोदय से स्पष्ट करते हुए मैंने उन्हें बताया कि मानवता के दृष्टिकोण से मेरी सहानुभूति ब्रिटेन और फ्रांस के साथ है । जो लंडन श्रबतक श्रभेद्य समझा गया है उसके विध्वंस होने की बात सोचते मेरा दिल दहल जाता है । जब मैंने वेस्ट मिनिस्टर ऐबी तथा उसके सम्भाव्य विध्वंस के बारे में सोचा तो मेरा दिल भर श्राया । में अधीर हो। गया हूँ । हृदय के श्रन्दर मेरी परमात्मा से इस प्रशन पर हमेशा लड़ाई रहती है कि वह ऐसी बातें क्यों होने देता है ? मुझे अपनी श्रहिंसा बिलकुल नपुंसक मालूम पड़ती है । परंतु दिनभर के संघर्ष के बाद यह उत्तर मिलता है कि न तो ईशवर् ही और न मेरी श्रहिंसा ही नपुंसक है । चाहे मुझे अपनी कोशिश में असफलता मिले, परन्तु, पूरे विशवास के साथ मुमे श्रहिंसा का प्रयोग करते ही रहना चाहिए । मैंने २३ जुलाई को एबटाबाद से, मानों इसी मानसिक व्यथा के पूर्वाभास को पाकर हेर हिटलर के पास यह पत्र भेजा था-

“मेरे मित्र मुझसे कह रहे हैं कि मानव जाति की खातिर