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क्या अहिंसा बेकार गयी?


मुमकिन हो गया था। उसने अपने साथियों से, जिनमें विश्वास की कमी थी, कहा-"विश्वास बढाओ और गढ़े को भरे चले जाओ। वह अथाह नहीं है, इसलिए वह जरूर भर जायगा।" इसी तरह मैं भी इस बात से मायूस नहीं हुआ हूँ कि हेर हिट-लर या जर्मनी का दिल अभीतक नहीं पिघला है। इसके विरुद्ध मैं यही कहूँगा कि मुसीबतों पर मुसीबतें सहते चले जाओ, जब-तक कि अन्धे को भी यह नज़र आने लगे कि दिल पिघल गया है। जिस तरह पास्टर नीमोलर की मुसीबतें बर्दाश्त करने के कारण शान बढ़ गई है, उसी तरह अगर एक यहूदी भी बहादुरी के साथ डटकर खड़ा हो जाय और हिटलर के हुक्म के आगे सर झुकाने से इन्कार कर दे, तो उसकी शान भी बढ़ जायगी और अपने भाई यहूदियों के लिए मुक्ति का रास्ता साफ कर देगा।

मेरा यह विश्वास है कि अहिंसा सिर्फ व्यक्तिगत गुण नहीं है, बल्कि एक सामाजिक गुण भी है जिसे दूसरे गुणों की तरह विकसित करना चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि समाज अपने आपस के कारोबार में अहिंसा का प्रयोग करने से ही व्यवस्थित होता है। मैं जो कहना चाहता हूँ, वह यह है कि इसे एक बड़े राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पैमाने पर काम में लाया जाये।

मैं 'स्टेट्समैन' द्वारा जाहिर की गई इस राय से सहमत नहीं हूँ कि हजरत ईसा की मिसाल ने हमेशा के लिए यह साबित कर दिया कि अहिंस सांसारिक बातों में नाकामयाब साबित होती है। हालांकि मैं जाति-पाँति के दृष्टिकोण से अपने आपको ईसाई