पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/१५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



१४४
युद्ध और अहिंसा


सदा ही गलत है।

(२) वर्तमान हिंसा और मुसीबत के वास्तविक कारण युद्ध से कभी दूर नहीं हो सकते। 'युद्ध का अन्त करने के लिए' होने चाले पिछले युद्ध ने यह बात भलीभाँति सिद्ध करदी है और यही हमेशा सत्य रहेगी। इसलिए, हिंसा का प्रयोग अन्यावहारिक है।

(३) जो लोग यह महसूस करते हैं कि (वे चाहे छोटी-छोटी बातों के लिए न लड़ें, फिर भी) स्वतंत्रता और प्रजातंत्र की रक्षा के लिए तो उन्हें लड़ना ही चाहिए, वे भ्रम में हैं। मौजूदा परिस्थितियों में युद्ध का अंत चाहे विजय में ही क्यों न हो, फिर भी उससे हमारी रही-सही स्वतंत्रतानों का उससे भी अधिक निश्चित रूप में अन्त होजाता है, जितना कि किसी आक्रमणकारी की जीत से होता। क्योंकि आजकल सफलता के साथ कोई युद्ध तबतक नहीं लड़ा जा सकता, जबतक कि सारी जनता को फौजी न बना डाना जाय। उस फौजी समाज में, जो कि दूसरे युद्ध के फलस्वरूप ज़रूर पैदा होगा, चाहे जीत उसमें किसी की क्यों न रहे, बंधक बनकर रहने की अपेक्षा जान-बूझकर अहिंसात्मक रूप में अत्याचार का प्रतिरोध करते हुए मरजाना कहीं बेहतर है।

'नहीं' के पक्ष में नीचे जिस्वी दलीले हैं:-

(१) अहिंसात्मक प्रतिरोध उन लोगों के मुकाबले में ही कारगर हो सकता है, जिनपर कि नैतिक और दया-माया के विचारों का असर पड़ सकता है। कासिज्म पर ऐसी बातों का न केवल कोई असर ही नहीं पड़ता, बल्कि फासिस्ट लोग खुलेआम