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क्या करें।


सब सरह के प्रतिरोध को ब्रह्म करने में किसी पसोपेश की, या उसके लिए चाहे जितनी पाशविकता से काम लेने की यह परवा नहीं करता। इसलिए फासिज्म के पागे अहिंसात्मक प्रतिरोध ठहर नहीं सकेगा। अतएव अहिंसात्मक प्रतिरोध वर्तमान परिस्थितियों में बुरी तरह अव्यावहरिक है।

(२) लोकतंत्रीय स्वतंत्रता की रक्षा के लिए होनेवाले हिंसास्मक प्रतिरोध में (याने युद्ध या युद्ध की ग्राम लाज़िमी भर्ती के समय) सहयोग देने से इन्कार करना एक तरह से उन्ही लोगों की मदद करना है, जो स्वतंत्रता को नष्ट कर रहे हैं। फासिस्ट आक्रमण को निस्सन्देह इस बात से बड़ा उत्तेजन मिला है कि प्रजातन्त्र में जनता के ऐसे आदमी भी रहे हैं। जो अपनी रक्षा के लिए बदना नहीं चाहते और जो युद्ध होने पर भी अपनी सरकारों का विरोध करेंगे और इस प्रकार युद्ध शुरू होने या किसी तरह की साज़िमी सैनिक भर्ती होने पर अपनी सरकारों की निन्दा करेंगे (और इस प्रकार रुकावट चाहेंगे)। ऐसी हालत में, रश के हिंसात्मक उपायों पर जान-बूझकर आपत्ति करनेवाला न केवल शान्ति-मदि में अप्रभावकारी रहता है, बल्कि वस्तुतः जो लोग उसे अंग कर रहे हैं उनकी मदद करता है।

(३) युद्ध स्वतंत्रता को भले ही नष्ट कर दे, लेकिन अगर प्रजातन्त्र बरकरार रहें तो कम-से-कम उसका कुछ या फिर से प्राप्त करने की कुछ सम्भावना तो रहती है, जबकि फ़ासिस्टों को