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अद्वितीय शक्ति

मेरी प्रत्येक प्रवृत्ति के मूल में अहिंसा रहती है, और इसीसे जिन तीन सार्वजनिक प्रवृत्तियों में मैं आजकल अपना सरबस उँड़ेलता दिखाई देता हूँ, उनके मूल में तो अहिंसा होनी ही चाहिए। ये तीन प्रवृत्तियाँ अस्पृश्यता निवारण, खादी और गाँवों का पुनरुद्धार हैं। हिन्दू-मुसल्मान-एकता चौथी वस्तु है। इसके साथ मैं अपने बचपन से ही ओत-प्रोत रहा हूँ। पर अभी मैं इस विषय में ऐसा कोई कार्य नहीं कर सकता, जो प्रत्यक्ष नजर आ सके। इसलिए इस दृष्टि से मैंने इस विषय में अपनी हार कबूल कर ली है। पर इसपर से कोई यह कल्पना न करले, कि मैं इस सम्बन्ध में हाथ धो बैठा हूँ। मेरे जीते जी नहीं तो मेरी मृत्यु के बाद हिंदू और मुसलमान इस बात के साक्षी होंगे कि मैंने हिन्दू-मुस्लिम एकता साधने का मंत्र जप अंत तक नहीं छोड़ा था। इसलिए आज, जब कि इटली ने अबीसीनिया के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया है, अहिंसा के विषय में थोड़ा विचार कर लेना अप्रासंगिक तो नहीं, किंतु आवश्यक ही है ऐसा मैं देखता हूँ।