पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/१६७

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१५८ युद्ध और अहिंसा इस हालत में गांधीजी के अहिंसा-शस्त्र पर अग्रगराय विचारकों का ध्यान स्वभावत: गया है और इस अहिंसा की विचारा- सरणी के पीछे जो श्रद्धा, प्रार्थना तथा आत्मशुद्धि की प्रेरणा है, जो धर्म भावना इस में सम्मिलित है, उससे संबन्ध रखनेवाले उनके प्रश्न उन्होंने किये -सं०] प्रश्न–धार्मिक, सामाजिक अथवा राजनैतिक हरेक क्षेत्र में आप जो कुछ कर रहे हैं उसके पीछे आपका हेतु क्या है? गांधीजी-शुद्ध धार्मिक । यही सवाल एक राजनैतिक प्रतिनिधि-मंडल के साथ मेरे इंगलैंड जाने पर स्वर्गीय भारत-मन्त्री माण्टेग्यू ने भी मुझसे पूछा था । उन्होंने कहा था, तुम्हारे जैसे समाज सुधारक इस मंडल के साथ यहाँ कैसे आये ? मैंने कहा कि मेरी सामाजिक प्रवृत्ति का यही विस्तार मात्र है । सारी मनुष्यजाति के साथ आत्मीयता कायम किये बिना मेरी धर्म-भावना सन्तुष्ट नहीं हो सकती और यह तभी सम्भव है जब कि राजनैतिक मामलों में मैं भाग लू । क्योंकि आजकी दुनिया में मनुष्यों की प्रवृत्ति एक और अभिभाज्य है । उसमें सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और शुद्ध धार्मिक ऐसे जुदे-जुदे भाग नहीं किये जा सकते। मानव-हित की प्रवृत्ति से भिन्न धर्म मैं नहीं जानता । ऐसी धर्म-भावना से रहित दूसरी तमाम प्रवृत्तियाँ नैतिकआधार-विहीन हैं और जीवन को खाली ‘अर्थहीन धाँधलेबाजी तथा ‘हल्ले-गुल्लेवाला' कर डालती हैं । प्रश्न-हम देखते हैं कि सर्वसाधारण के ऊपर आपका अजीब