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अहिंसा और अन्तर्राष्ट्रीय मामले


प्रभाव है। यह कार्य के प्रति आपकी निष्ठा का परिणाम है या सर्व-साधारण के प्रति आपके प्रेम का?

गांधीजी-सर्वसाधारण के प्रति प्रेम का। सर्वसाधारण के प्रति अपने प्रेम की ही वजह से मैंने अपने जीवान में अस्पृश्यता-निवारण का सवाल उठाया है। मेरी माँ ने कहा, 'तू इस लड़के को मत छू, यह अस्पृश्य है।' मैंने कहा-क्यों नहीं छुऊँ? और उसी दिन से मेरा विद्रोह शुरू हो गया।

प्रश्न-यूरोप के शान्तिवादियों की वृत्ति, जिसे कि हम यूरोपवाले अभी बहुत सफलतापूर्वक ग्रहण नहीं कर सके, आपको अपनी अहिंसावाद की दृष्टि से कैसी लगती है?

गांधीजी - मेरी धारणा के अनुसार अहिंसा किसी भी रूप या किसी भी अर्थ में निष्क्रिय वृत्ति है ही नहीं। अहिंसा को जिस तरह मैं समझता हूँ, उसके अनुसार तो दुनिया की यह सबसे बड़ी सक्रिय शक्ति है, इसलिए भौतिकवाद हो या दूसरा कोई भी वाद, यदि अहिंसा उसे नष्ट न कर सकती हो, तो मैं यही कहूँगा कि वह अहिंसा ही नहीं है। अथवा दूसरे शब्दों में कहूँ कि अगर आप मेरे सामने कुछ ऐसी समस्याएँ लायें कि जिनका मैं हल न बता सँकू, तो मैं तो यही कहूँगा कि मेरी अहिंसा अपूर्ण है। अहिंसा एक सार्वभौम नियम है। अपने आधी शताब्दी के अनुभव में मूझे एक भी ऐसा संयोग या स्थिति याद नहीं आती कि जिसमें मुझे यह कहना पड़ा हो कि मैं लाचार हूँ, मेरे पास अहिंसा के अनुसार कुछ उपाय