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अहिंसा और अन्तर्राष्ट्रीय मामले १६३ तथा उसकी पद्धति से उसका सामना भी नहीं करेंगे, तो इस स्थिति में अत्याचारी को उस प्रजा पर संहारक बम बरसाना पुसा नहीं सकता। अगर अत्याचारी के आगे अनाप-शनाप भोजन रख दिया जाय, तो एक समय ऐसा आयगा कि जब उसका पेट और ज़्यादा भोजन ठूसने से इन्कार कर देगा। अगर दुनिया के सारे चूहे कान्फ्रन्स करके यह निश्चय कर लें कि बिल्ली से डरेंगे नहीं। बल्कि सब के सब सामने जाकर बिल्ली के मुँह में चले जायँगे, तो सचमुच ही सचमुच ही मूषक जाति का उद्धार हो जाय। मैंने एक बिल्ली को चूहे के साथ खिलवाड़ करते हुए देखा था, चूहे को मार न डालकर उसे उसने जबड़े में पकड़ रक्खा था। बाद में छोड़ दिया और जब यह देखकर कि वह भागा जा रहा है उसे फिर छलाँग मारकर पकड़ लिया। अन्त में उस चूहे ने निरे डर के मारे ही प्राण छोड़ दिये। अगर चूहे ने भागने का प्रयत्न न किया होता, तो बिल्ली को उससे कुछ मज़ा न मिलता। ।

प्रश्न-आप हिटलर और मुसोलिनी को जानते नहीं हैं। उनपर किसी भी तरह का नैतिक असर पड़ ही नहीं सकता। अन्तःकरण नाम की चीज़ ही उनके पास नहीं है और दुनिया के लोकमत की उन्हें ज़रा भी परवाह नहीं है। आपकी सलाई के अनुसार चेक प्रजा अहिंसा से उसका सामना करने जाय, तो उसे इन अधिनायकों का सीधा शिकार ही बनना पड़े। मूलतः अधिनायकता की व्याख्या से ही नीति की कक्षा बाहर हे। फिर नैतिक हृदय-परिवर्तन का नियम लागू ही कैसे हो सकता है?

गांधीजी-अपनी इस दलील में आप यह मान लेते हैं कि