पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/१७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

अहिंसा और अन्तर्राष्ट्रीय मामले १६५ पतन का प्रारम्भ समझा जायेगा । (२) अपार पशुबल के सामने प्रजा हिम्मत हार जाये । ऐसा सभी युद्धों में होता है । पर अगर ऐसी भीरुता प्रजा में आजाये, तो यह अहिंसा के कारण नहीं बल्कि अहिंसा के अभाव से, अथवा पर्याप्त मात्रा में सक्रिय अहिंसा न होने के कारण, होगा । (३) तीसरे, यह हो कि जर्मनी जीते हुए देश में अपनी अतिरिक्त जन- संख्या को ले जाकर बसाये । इसे भी हिंसात्मक सामना करके रोक नहीं सकते । क्योंकि हमने यह मान लिया है कि ऐसा मुकाबला अशक्य है, इसलिए अहिंसात्मक मुकाबला ही सब प्रकार की परिस्थितियों में प्रतिकार का एक मात्र अचूक तरीक़ा है ।

 और में यह भी नहीं मानता कि हिटलर तथा मुसोलिनी 

दुनिया के लोकमत की सर्वथा उपेक्षा कर सकते हैं । आज बेशक वे वैसा करके सन्तोप मान सकते हैं, क्योंकि तथाकथित बड़े- बड़े राष्ट्रों में से कोई भी साफ़ हाथों नहीं आता और इन बड़े- बड़े राष्ट्रों ने उनके साथ पहले जो अन्याय किया था वह उन्हें खटक रहा है। थोड़े दिनों की बात है कि एक अंग्रेज़ मित्र ने मेरे सामने यह स्वीकार किया था कि “ आज का नाज़ी जर्मनी इंग्लैण्ड के पाप का फल है और वर्साई की संधि ने ही हिटलर को पैदा किया है । प्रश्न-बहैसियत एक ईसाई के, अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति के काम में मैं किस तरह योग दे सकता हूँ ? किस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय अंधाधुंधी को