पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/१८०

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                        लड़ाई में भाग                         १७१
 अपनि स्थिति सुधारनी चाहिए । ब्रिटिश शासन-पद्धति को मैं दोषमय तो मानता था, परन्तु आज की तरह वह उस समय असह्य नहीं मालूम होती थी । अतएव आज जिस प्रकार वर्तमान शासन-पद्धति पर से मेरा विश्वास उठ गया है और आज मैं अंग्रेज़ी राज्य की सहायता नहीं कर सकता, इसी तरह उस समय जिन लोगों का विश्वास इस पद्धति पर से ही नहीं, बल्कि अंग्रेज़ी अधिकारियों पर से भी उठ चुका था, वे मदद करने के लिए कैसे तैयार हो सकते थे ?
   उन्होंने इस समय की प्रजा की माँगें ज़ोर के साथ पेश करने और शासन में सुधार कराने की आवज उठाने के लिए बहुत अनुकूल पाया । मैंने इसे अंग्रेज़ो की आपत्ति का समय समप्त कर माँगें पेश करना उचित न समजा और जबतक लड़ाई चल रही है तबतक हक़ माँगना मुल्तवी रखने के संयम में सभ्यता और दीर्घ-दृष्टि समझी । इसलिए मैं अपनी सलाह पर मज़बूत बना रहा और कहा कि जिन्हें स्वयंसेवकों में नाम लिखाना हो वे लिखा दें। नाम अच्छी संख्या में आये। उनमें लगभग सब प्रान्तों और सब धर्मों के लोगों के नाम थे ।
  फिर लार्ड क्रू के नाम एक पत्र भेजा गया । उसमें हम लोगों ने अपनी यह इच्छा और तैयारी प्रकट की कि हम हिन्दुस्तानियों के लिए घायल सिपाहियों की सेवा-शुश्रूषा करने की तालीम की यदि आवश्यकता दिखाई दे तो उसके लिए तैयार हैं। कुछ सलाह-मशविरा करने के बाद लार्ड क्र ने हम लोगों का प्रस्ताव