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                         धर्म की समस्या

युद्ध में काम करने के लिए, हम कुछ लोगों ने सभा करके जो अपने नाम सरकार को भेजे, इसकी खबर दक्षिण अफ्रीका पहुँचते ही वहाँ से दो तार मेरे नाम आये। उनमें से एक पोलक का था। उन्होंने पूछा था- 'आपका यह कार्य अहिंसा-सिद्धांत के खिलाफ तो नहीं है ?’

मैं ऐसी तार की आशंका कर ही रहा था; क्योंकि ‘हिन्द-स्वराज्य' में, मैंने इस विषय की चर्चा की थी श्रौर दक्षिण अफ्रीका में तो उसकी चर्चा निरन्तर हुआ ही करती थी। हम सब इस बात को मानते थे कि युद्ध अनीति-मय है। ऐसी हालत में और जबकी मैं अपने पर हमला करनेवाले पर भी मुकदमा चलाने के लिए तैयार नहीं हुआ था, तो फिर जहाँ दो राज्यों में युद्ध चल रहा हो और जिसके भले या बुरे होने का मुझे पता न हो उसमें मैं सहायता कैसे कर सकता हूँ, यह प्रश्न था। हालाँकि मित्र-लोग यह जानते थे कि मैंने बोआर-संग्राम में योग दिया था तो भी उन्होंने यह मान लिया कि उसके बाद मेरे विचारों में परि-