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१७६ युद्ध अौर अहिंसा


असर दूसरे पर होता है अौर इस कारग भी मनुष्य हिंसा से सोलहों ओना अछूता नहीं रह सकता। जो मनुष्य समाज में रहता है, वह अनिच्छा से ही क्यों न हो, मनुष्य-समाज की हिंसा का हिस्सेदार बनता है। ऐसी दशा में जब दो राष्ट्रों में युद्ध हो तो अहिंसा के अनुयायी व्यक्ति का यह धर्म है कि वह उस युद्ध को रुकवावे। परंतु जो इस धर्म का पालन न कर सके, जिसे विरोध करने का सामर्थ्य न हो, जिसे विरोध करने का अधिकार न प्राप्त हुआ हो, वह युद्ध-कार्य में शामिल हो सकता है अौर ऐसा करते हुए भी उसमें से अपने को, अपने देश को अौर संसार को निकालने की हार्दिक कोशिश करता है।

मैं चाहता था कि अंग्रेजी राज्य के द्वारा अपनी, अर्थात अपने राष्ट्र की, स्थिति का सुधार करूँ। पर मैं तो इंग्लैंड में बैठा हुआ इंग्लैंड की नौ-सेना से सुरक्षित था। उस बल का उपयोग इस तरह करके मैं उसकी हिंसकता में सीधे-सीधे भागी हो रहा था। इसलिए यदि मुम्के इस राज्य के साथ किसी तरह संबंध रखना हो, इस साम्राज्य के म्करगडे के नीचे रहना हो, तो या तो मुम्के युद्ध का खुल्लमखुल्ला विरोध करके जब तक उस राज्य की युद्ध-नीति नहीं बदल जाय तब तक सत्याग्रह-शास्त्र के अनुसार उसका बहिष्कार करना चाहिए, अथवा भंग करने योम्य कानूनों का सविनय भंग करके जेल का रास्ता लेना चाहिए, या उसके युद्धकार्य में शरीक होकर उसका मुकाबला करने का सामर्थ्य अौर अधिकार प्राप्त करना चाहिए। विरोध की शक्ति मेरे अन्दर