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युद्ध और अहिंसा

पिछले महायुद्ध में मैंने जो भाग लिया था और उसका 'आत्मकथा' में जिस प्रकार उल्लेख किया है वह अभी तक मित्रों और टीकाकारों को उलझन का विषय बना हुआ है। एक पत्र का जिक्र पहले कर आये हैं। यह दूसरा पत्र आया है—


"आपने 'आत्म-कथा' के चौथे भाग के ३८ वें अध्याय में पहले-पहल यूरोपीय महासमर में अपने शामिल होने का जिक्र किया है इसके औचित्य के विषय में मुझे शंका है। मेरा ख़याल है कि मैं शायद आपका मतलब ही ठीक-ठीक नहीं समझ सका हूँ। इसलिए प्रार्थना है कि आप कृपा कर मेरी शंकाओं का समाधान कर दें।

"पहला प्रश्न है 'आपको दरअसल लडाई में शामिल होने के लिए किस बात ने प्रेरित किया?' आप कहते हैं—'इसलिए अगर मुझे उस राज्य के साथ आखिर सरोकार रखना हो, उस राज्य की छत्रछाया में रहना हो तो या तो मुझे खुले तौर पर युद्ध का विरोध करके जब तक उसकी युद्ध-नीति न बदले तबतक सत्याग्रह के