पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/१९७

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: ५ : युद्ध के प्रति मेरे भाव [ गांधी जी के द० अफ्रीका में बोअर युद्ध के समय तथा यूरोपियन महासमर के समय सरकार को सहायता देने के संबंध में एक यूरोपियन रेवरेंड बी० लाइट इवोल्यूशन नामक फ्रांसीसी पत्र में एक लेख लिखकर कुछ सवाल पूछे हैं । यं० इं० में गाँधीजी उनका जवाब यों देते हैं । ] सिर्फ अहिंसा की ही कसौटी पर कसने से मेरे आचरण का बचाव नहीं किया जा सकता । अहिंसा की दृष्टि से, शास्त्र धारण कर मारनेवालों में और नि:शस्त्र रहकर घायलों की सेवा करनेवालों में मैं कोई फर्क नहीं देखता । दोनों ही लड़ाई में शामिल होते हैं और उसी का काम करते हैं । दोनों ही लड़ाई के दोप के दोपी हैं । मगर इतने वर्षों तक आत्मनिरीक्षण करने के बाद भी मुझे यही लगता है कि मैं जिस परिस्थिति में था, मेरे लिए वही करना लाजिम था जो कि मैंने बोअर युद्ध, यूरोपियन महासमर, और जुलू बलवे के समय भी सन् १९o६ में किया था ।