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युद्ध के प्रति मेरे भाव


वालों को वह शिक्षण देने के पक्ष में मत देना मेरा कर्तव्य हो; क्योंकि मैं जानता हूँ कि अहिंसा में जिस हद तक मेरा विश्वास है, उस हद तक इस राष्ट्र के सभी आदमी अहिंसा में विश्वास नहीं करते। किसी समाज या आदमी को बलपूर्वक अहिंसक नहीं बनाया जा सकता।

अहिंसा का रहस्य अत्यंत गूढ़ है। कभी-कभी तो अहिंसा की दृष्टि से किसी आदमी के काम की परीक्षा करना कठिन हो जाता है। उसी तरह कभी-कभी उसके काम हिंसा- जैसे भी लग सकते हैं जब कि वे अहिंसा के व्यापक से व्यापक अर्थ में अहिंसक ही हों और पीछे चलकर अहिंसक ही साबित भी हों । इसलिए उपर्युक्त अवसरों पर अपने व्यवहार के बारे में मैं सिर्फ इतना ही दावा कर सकता हूँ कि उनके मूल में अहिंसा की ही दृष्टि थी। उनके मूल में कोई बुरा राष्ट्रीय या दूसरा स्वार्थ नहीं था। मैं यह नहीं मानता कि किसी एक हित का बलिदान करके राष्ट्रीय या किसी दूसरे हित की रक्षा करनी चाहिए।

मुझे अपनी यह दलील अब और आगे नहीं बढ़ानी चाहिए। आखिर अपने विचार पूरे-पूरे प्रकट करने के लिए भाषा एक मामूली त्रुटिपूर्ण साधन मात्र है । मेरे लिए अहिंसा कुछ महज दार्शनिक सिद्धान्त भर ही नहीं है। यह तो मेरे जीवन का नियम है, इसके बिना मैं जी ही नहीं सकता। मैं जानता हूँ कि मैं गिरता हूँ। बहुत बार चेतनावस्था में ही। यह