पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/२०४

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कौनसा मार्ग श्रेष्ठ है ? १६.५ भर्ती कर लेते हैं । फूांस में तो एक ऐसा क़ानून बना देने की सिफारिश की गई है, जिसकी रू से स्त्रियों का भर्ती होना भी अनिवार्य हो जाये । शान्ति के दिनों में भी पाठशालाओं में फौजी तालीम को अनिवार्य बना देने, राष्ट्रीय तालीम पर फौजी विभाग की सूक्ष्म देखरेख और प्रभुता रहने, आदि कारणों से देश के नौजवानों की मनोवृत्ति भी दिन-दिन ज्यादा युद्ध प्रिय होती जाती है । यही नहीं, बल्कि डाकघर, समाचार-पत्र, रेडियो, सिनेमा, विज्ञान, कला आदि क्षेत्रों के प्राणी भी धीरे-धीरे इसकी अधीन्ता में आते जाते हैं । इससे यह डर लगता है कि कहीं जगतव्यापी युद्ध की जो तैयारी और जो संगठन इस समय हो रहा है, उसके फन्दे में ये लोग भी शीघ्र ही न फेंस जायें । अगर यह हुआ ही तो इसकी वजह से मानव जाति की स्वतंत्रता की, वाणी-स्वातंत्र्य और विचार-स्वातंत्र्य के जन्म-सिद्ध अधिकार और सामाजिक उन्नति को घोर आघात पहुँचेगा । अर्थात फौजी साधनों द्वारा देश के संरक्षण के लिए जी कीमत चुकानी पड़ती है, उसमें इसकी भी गिनती होनी चाहिए । इसपर से पाठक समझ सकेंगे कि फौजी तैयारी द्वारा की गई रक्षा संसार के लिए कितनी महेंगी पड़ती है और भविष्य में कितनी अधिक महँगी हो पड़ेगी । लेकिन इससे भी अधिक चिन्ता की बात तो यह है कि फौजी साधन पर बराबर अनन्त धन-व्यय करते हुए भी आज जनता सुख की नींद नहीं सो सकती । संभव है, दस-बीस