पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/२०५

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१६६ युद्ध और अहिंसा साल तक जैसे-तैसे यह हालत निभ जाय, मगर आखिरकार तो इस नीति के कारण निस्सन्देह संसार पतन के गड्ढे में गिरकर रहेगा । कुछ समय पहले सेनेटर बीरा ने ‘तैयारी के मानी' शीर्षक से लिखते हुए ससार की जनता पर दिन पर दिन बढ़नेवाले कर और सरकारी कर्ज के बढ़ते हुए बोझ की तरफ खास तौर पर ध्यान खींचा था और कहा था-‘भविष्य में सरकारों को अपनी शक्ति का अधिक से अधिक उपयोग विरोधी दल के सामने लडने में नहीं, बल्कि अपनी रिआया की आर्थिक और राजनैतिक अशन्ति को दबाने में करना होगा ।।' इसका नतीजा यह होगा कि राज्य जितने बड़े पैमाने पर फौजी तैयारी करेंगे, उतनी ही उनकी हालत संकटमय बनेगी; क्योंकि सरकार और रिआया के बीच की खाई अधिक गहरी होती जायेगी और जनता में निराशा तथा असन्तोष का वातावरण भी बढ़ता ही जायगा । इस हालत की संरचण की तैयारी कहना ' संरच्हण ' शब्द का दुरुपयोग करना है। जिसकी वजह से रिआया का आर्थिक संकट घटने के बदले बढ़ता है, वह तैयारी नहीं, गसिक अ-तैयारी है ।” आजकल लोग सहज ही यह मान लेते हैं कि जो बात अमरिका और इंग्लैंड के लिए उचित-अनुकूल है वही हमारे लिए भी उचित होनी चाहिए । मगर उक्त लेखक ने फौजी तैयारी के लिए आवश्यक खर्च के जो चौंकानेवाले आँकड़े दिये हैं उनसे सचमुच हमें सावधान हो जाना चाहिए। आजकल की युद्ध-कला