पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/२०६

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कौनसा मार्ग श्रेष्ठ है ? १६७ केवल घातक शास्त्रों को बनानेवाली कला-मात्र रह गई है । उसमें वीरता, शौर्य या सहनशक्ति को बहुत ही थोड़ा स्थान प्राप्त है । हजारों स्त्री, पुरुष और बालकों को बटन दबाकर या ऊपर से ज़हर बरसाकर निमिष मात्र में नामशेष कर देना-मार डालना ही वर्तमान युद्ध-कला की पराकाष्ठा है। क्या हम भी अपने संरक्षण के लिए इसी पद्धति का अनुकरण किया चाहते हैं ? हमें इसपर विचार करना होगा कि क्या हमारे पास इस संरक्षण के लिए काफी आर्थिक साधन या शक्ति है ? हम दिन-दिन बढ़ते जानेवाले फौजी खर्च की शिकायत करते हैं, मगर यदि हम इंग्लैंड या अमेरिका की नकल करने लगेंगे तो हमारा फौजी खर्च आज से कहीं अधिक बढ़ जायगा । आलोचक शायद पूछंगे कि अगर किसी चीज के लिए यह संरक्षण आवश्यक ही हो तो उतना भार उठाकर भी उसकी रक्षा क्यों न की जाये ? लेकिन बात तो यह है कि दुनिया आज इस गम्भीर सवाल का जवाब खोजने लगी है कि यह संरक्षण कर्त्तव्य है अथवा नहीं ? उवत लेखक जोरदार शब्दों में जवाब देते हुए कहते हैं—‘किसी भी राज्य के लिए यह कर्त्तव्य नहीं' । अगर यह नियम सही-सच्चा हो तो हमें भी सेना को बढ़ाने के झंझट में न फँसना चाहिए। इसका यह अर्थ नहीं होता कि कोई हमसे जबरदस्ती से शस्त्र छीनले । यह संभव नहीं कि कोई परदेशी सरकार अपनी शासित जनता से बलात् आहिंसा का पालन करा सके । हर एक देश की प्रजा को स्वेच्छापूर्वक आत्म विकास