पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/२०९

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 २०० युद्ध और अहिंसा है । वह सदा के लिए मिट गई है । अगर हम अहिंसा-बल पाने की इच्छा रखते हैं तो हमें धैर्य से काम लेना होगा, समय की प्रतिक्षा करनी होगी । यानी, अगर सचमुच ही हम अपनी रक्षा करना चाहते हों और संसार की प्रगति में स्वयं भी हाथ बँटाने की इच्छा रखते हों, तो उसके लिए तलवार-त्याग, पशुबल-त्याग् के सिवा दूसरा कोई रास्ता है ही नहीं । हिन्दी 'नवजीवन' : १ सितम्बर, १६१६