पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८
२८
युद्ध और अहिंसा

अदभुत उपाय की ओर संसार का ध्यान आकर्षित हुआ है, यह स्पष्ट है। अतः संसार को भारत से यह आशा करने का अधिकार है कि इस युद्ध में, जिसे संसार के किसी भी देश की प्रजा ने नहीं चाहा, यह आग्रह करके वह निश्चयात्मक भाग ले कि इस बार शान्ति इस तरह का मजाक न हो कि विजेता युद्ध के माल का आपस में बँटवारा कर लें और विजितों का अपमान हो। जवाहरलाल नेहरू ने, जिन्हें कि कांग्रेस की ओर से बोलने का अधिकार प्राप्त है, गौरवपूर्ण भाषा में कहा भी है कि शान्ति का मतलब उन लोगों की स्वतंत्रता होना चाहिए जिन्हें संसार की साम्राज्यवादी सत्ताओं ने गुलाम बना रखा है। मुझे इस बात की पूरी उम्मीद है कि कांग्रेस संसार को यह भी बतला सकेगी कि न्यायोचित बात की रक्षा के लिए शस्त्रास्त्र से जो शक्ति प्राप्त होती है वह इसी बात के लिए और वह भी तर्क के इससे अच्छे प्रदर्शन के साथ, अहिंसा से प्राप्त शक्ति के मुकाबिले में कुछ भी नहीं है। शस्त्रास्र कोई दलील नहीं दे सकते, वे तो उसका सिर्फ दिखावा ही कर सकते हैं।


हरिजन सेवक : १४ अक्तूबर, १९३९


___________