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कसौटी पर


तक कि हम अपने सिद्धान्त पर मर-मिटने के लिए तैयार न हो जायेंगे, हम सारे हिन्दुस्तान को अपने मत का नहीं बना सकेंगे।

मुझे तो विरुद्ध रास्ता अपील करता है। सेना में पहले से ही उत्तर हिन्दुस्तान के मुसलमानों, सिक्खों और गोरखों की बहुत बड़ी संख्या है। अगर दन्तिण और मध्यभारत के जनसाधारण कांग्रेस का सैनिकीकरण कर देना चाहते हैं, जो उनका प्रतिनिधित्व करती है, तो उन्हें उनकी (मुसलमान, सिक्ख वगैरा की) प्रतिस्पर्धा में आना पड़ेगा। कांग्रेस को तब सेना का एक भारी बजट बनाने में भागीदार बनना पड़ेगा। ये सब चीजें कांग्रेस की सहमति लिए वगैर सम्भवत: हो जायें। सारे संसार में तब यह चर्चा का बिषय बन जायगा कि कांग्रेस ऐसी चीजों में शरीक है या नहीं। संसार तो आज हिन्दुस्तान से कुछ नई और अपूर्व चीज देखने की प्रतीकशा में है। कांग्रेस ने भी अगर वही पुराना जीर्ण-शीर्ण कवच धारण कर लिया, जिसे कि संसार आज धारण किये हुए हैं, तो उसे उस भीड़भड़क्के में कोई नहीं पहचानेगा। कांग्रेस का नाम तो आज इसलिए है कि वह सर्वोत्तम राजनीतिक शस्त्र के रूप में अहिंसा का प्रतिनिधित्व करती है। कांग्रेस अगर मित्रराष्ट्रों को इस रूप में मदद देती है कि उसमें अहिंसा का प्रतिनिधि बनने की शमता है, तो वह मित्रराष्ट्रों के उद्देश्य को एक ऐसी प्रतिष्ठा और शक्ति प्रदान करेगी, जो युद्ध का अन्तिम भाग्यनिर्णय करने में अनमोल सिद्ध होगी। किन्तु कार्यसमिति के सदस्यों ने जो इस प्रकार की अहिंसा का इजहार नहीं किया, इसमें