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युद्ध और अहिंसा


ईश्वर के समर्थ हाथों में है। उसके हुक्म के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता। उसका हुक्म उसके कानून की शक्ल में ही जारी होता है। यह कानून सदा वैसा ही रहता है, कभी बदलता नहीं उसमें और उसके कानून में कोई भेद भी नहीं है। हम उसे आैर उसके कानून को किसी आईने की मदद से ही पहचान सकते हैं और वह धुंधला-सा। पर उस कानून की जो हलकी सी झलक दिखाई देती है वह मेरे अन्तर को आनन्द, आशा और भविष्य में श्रद्धा से भर देने के लिए काफ़ी है

‘हरिजन-सेवक' : ६ दिसम्बर, १६३६