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असल बात

एक मित्र ने मुझे एक पत्र लिखा है। वह लगभग ज्यों-का-त्यों यह है:

हम सबके दिलों में आपका जो विशेष स्थान है उसके कारण आपपर इतनी भारी जिम्मेदारियाँ आ पड़ी हैं केि आपको पत्र लिखकर उस बोझ को बढ़ाने में मुझे हमेशा संकोच रहता है। असल में, मैं उसी समय लिखता हूँ जब मुझसे किसी खास प्रेरणा के कारण रहा ही नहीं जाता। आप जानते हैं कि लड़ाई शुरू होने के महीनों पहले से मेरे मन में कितनी गहरी चिन्ता रही है। आपको मेरा यह पक्का विश्वास भी मालूम है कि युद्ध अनिवार्य था, क्योंकि इसके मूल कारण इतने गहरे चले गये थे कि बातचीत से मामला सुलभ नहीं सकता था।

कांग्रेस ने अपने प्रस्ताव में यह माँग की कि अंग्रेज खासकर साम्राज्य के मातहत देशों और हिन्दुस्तान के लिए अपने इरादे खोलकर बतायें। यह मुझे बहुत सुन्दर लगा। इससे नैतिक प्रश्न साम्राज्य-सरकार के सीधे सामने आगये और जी स्वार्थपूर्ण