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युद्ध और अहिंसा


और आदर्शहीन उपयोगिता का बुरा वातावरण आज दुनिया के मामले निपटाने में राजनीतियॊं पर हावी हो रहा है उसके बीच में हिन्दुस्तान एक अजीब शान के साथ खड़ा दिखाई देता है। यह तो मुझे आशा थी ही कि अंग्रेजीं लोग सीधा-सच्चा जवाब न दे सकेंगे और बदलें झाँकेंगे। जब हिन्दुस्तान को ‘स्वाधीनता' मिलेगी, तो उसका सबक यही होगा कि उसे हासिल करने में रुकावट डालने की केिसी की भी शक्ति नहीं रही थी। ‘स्वाधीनता' से मेरा अभिप्राय यह है कि हिन्दुस्तान को अंग्रेजों और बाक़ी दुनिया के साथ कैसे सम्बन्ध रखना है, इसका निर्णय करने की आज़ादी हो। मेरे खयाल में वह समय अभी नहीं आया है, पर वह प्रस्ताव पास होने के बाद हर हिन्दुस्तानी, फिर वह कहीं भी हो, दूसरे राष्ट्रों के लोगों के सामने अभिमान और गौरव के साथ चार आँखें कर सकता है। मुझे तो उससे बड़ी प्रेरणा मिली।

इस मामले में कांग्रेस के रवैये और काम से मैं सोलह आने सहमत हूँ। मगर कुछ दूसरी बातों में मेरी-उसकी पूरी तरह एक राय नहीं है। मुझे मालूम है कि अगर मैं बताऊँ तो आप धीरज से सुनेंगे।

पहली बात तो यह है कि मुझे ऐसा लगता है कि इस मामले को कुछ ऐसा समझा जा रहा है मानो यह सिर्फ अंग्रेजों को मदद देने की बात हो और अगर अंग्रेजों हिन्दुस्तान से मदद लेना चाहते हैं तो यह उनका काम है कि हिन्दुस्तान की वाजिब माँगों को मान लें और भीतरी का अर्थ भी मालूम होनी चाहिए।