पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
४४
युद्ध और अहिंसा


वह बेशक है तो भी मौजूदा साम्यवादी राष्ट्र और संयुक्त राज्य (अमेरीका) ही अन्त में दनिया की उस अन्यायपूर्ण परिस्थिति के लिए जिम्मेदार हैं जिससे हिटलर, हिटलर बन सका। बेशक, इस लड़ाई और पिछली लड़ाई दोनों का अन्तिम दोष जर्मनी की अपेकचा से फांस और इग्लैंड का ही अधिक है। इतने पर भी इन सब बातों का यह मतलब नहीं है कि जर्मनी की जीत से न्याय या दुनिया की भलाई बढ़ेगी। वे इटली और जापानवालों की तरह इस कल्पना को उत्साह के साथ मानने लगे हैं कि शैर-युरोपियन जातियों पर साम्राज्यवादी हुकूमत क़ायम की जाये। यह काम वे अंग्रेजों, फूांसीसियों और डच लोगों के ही हाथ में न छोड़कर खुद भी उसमें शामिल होना चाहते थे। नतीजा यह होगा कि जर्मनों की सच्ची जीत हुई ती साम्राज्यवाद के उसूल की जिन्दगी और भी बढ़ जायगी और मुझे भरोसा है कि शैर-युरोपियन जातियों की पराधीनता पहले से कहीं अधिक गम्भीर और पतित हो जायेगी-इसलिए उस हालत में साम्राज्यवाद शासकों के इस यकीन पर क़ायम होगा कि हम “ऊँची नसल” के हैं, इसलिए हमें पराधीन जाति के स्वार्थों को पूरी तरह हमारे अपने स्वाथों के मातहम रखने का पूरा अधिकार है। जर्मनों के बारे में जितना मैं खुद जानता हूँ उससे मुझे डर है कि अगर उन्होंने जीतकर यदि संसारव्यापी साम्राज्य क़ायम कर लिया तो वे "जाति" के इस तत्त्वज्ञान को निठुरता से अमल में लाकर उसे ठेठतक पहुँचाये बिना न रहेंगे। और हम अपने इन “आर्यन' प्रभुऒं के “लकड़हारे और पनिहारे”