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असल बात


देना अनीतिपूर्ण होगा।

“आपकी तरह में नाजीवाद के बारे में कोई नियम नहीं बनाना चाहता। जर्मन भी वैसे ही मनुष्य हैं जैसे आप या मैं। और ‘वादों' की तरह नाजीवाद भी आज का खिलौना है। जो उनका हाल होना है वही इसका भी होगा।

“आप और मुझमें जो फर्क है वह मेरी समझ में आ गया है। पश्चिमी होने के कारण आप बुद्धि को श्रद्धा के मातहत नहीं कर सकते। मैं हिन्दुस्तानी ठहरा। मैं चाहूँ तो भी श्रद्धा की बुद्धि के अधीन नहीं कर सकता। आप परमपिता परमात्मा को भी अपनी बुद्धि से ललचाना चाहते हैं। मैं ऐसा नहीं कर सकता। देवं चैवात्र पंचमम्।"

“हमारे बौद्धिक मतभेदों के बावजूद हमारे हृदय हमेशा ही एक रहे हैं, और रहँगे।”

‘हरिजन-सेवक' : २३ दिसम्बर, १९३९