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अहिंसा फिर किस काम की?

क हिन्दुस्तानी मित्र के पत्र का सार नीचे दे रहा हूँ :-

"दिल दुखता हैं नार्वे की दर्दभरी कहानी सुनकर। वे लोग हिम्मत से लड़े तो सही, लेकिन अधिक बलवान दुश्मन के मुक़ाबिले में हार बैठे। इससे हिंसा की निरर्थकता साबित होती है। लेकिन क्या हम दुनिया की समस्या को हल करने के लिए कुछ अहिंसा सिखा रहे हैं? ब्रिटेन को परेशान करके क्या हम जर्मनी को उत्साहित नही कर रहे हैं? नार्वे और डेन्मार्क हमारे रुख को कैसे ठीक समझ सकते हैं? उनके लिए हमारी अहिंसा किस काम की? चीन और स्पेन को हमने जो इमदाद दी, उसके बारे में भी वह गलतफहमी कर सकते हैं। आपने जो फर्क किया है वह केवल इसलिए केि साम्राज्यवादी ताकत को आप मदद नहीं देना चाहते, हालाँकि वह एक अच्छे काम के लिए लड़ रही है। पिछली लड़ाई में आपने भर्ती करवाई लेकिन आज आपका ख़याल बिल्कुल दूसरा है। फिर भी आप कहेंगे कि यह सब ठीक है। यह कैसे? मैं तो नहीं समझता हूँ।"