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युद्ध और अहिंसा


के लिए तुम्हें खुद तैयार रहना चाहिए। गुण्डे सिर्फ बुजदिल लोगों के बीच पनप सकते हैं । पर जो लोग हिंसात्मक या अहिंसात्मक रूप से अपनी रक्षा करने के लायक हैं उनसे उनको कोई रियायत नहीं मिल सकती। अहिंसात्मक अत्मरक्षण में अपने जान-माल के बारे में साहसिकता की वृत्ति होती है। अगर उसपर दृढ़ रहा जाये तो तो अंत में वह गुण्डई का निश्चित इलाज साबित होगा। लेकिन अहिंसा एक दिन में तो सीखी नहीं जा सकती । इसके लिए अभ्यास और आचरण की जरूरत है। आप अभी से इसे सीखना शुरू कर सकते हैं । आपको अपनी जान या माल या दोनों को कुर्बान करने को तैयार होना चाहिए । अगर हिंसात्मक या अहिंसात्मक किसी तरह से अपनी रक्षा करना आप नहीं जानते तो अपनी सारी कोशिशों के बावजूद सरकार आपको बचाने में समर्थ न होगी। चाहे कोई सरकार कितनी ही ताकतवर हो, जनता की मदद के बिना इसे नहीं कर सकती । अगर ईश्वर भी सिर्फ उन्हींकी मदद करता है जो खुद अपनी मदद करते हैं, तो नाशमान सरकारों के सम्बन्ध में यह बात कितनी सत्य होगी । हिम्मत मत हारो और यह मत सोचो कि कल कोई सरकार न होगी और अराजकता-ही-अराजकता रह जायेगी। आप खुद अभी सरकार बन सकते हैं और जिस आफत की आप कल्पना करते हैं उसमें तो आपको सरकार बनना ही पड़ेगा । नहीं तो आप नष्ट हो जायेंगे।
'हरिजन-सेवक' : ८ जून, १९४०