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हिटलरशाही से कैसे पेश आयें?


में खात्मा हो जाये तो सवतन्त्रता-प्राप्ति का वह प्रयत्न उपहास्य हो जाता है। उस हालत में वह महत्त्वाकांक्षा का निन्दनीय संतोष बन जाता है। फ्रांसीसी सैनिकों की वीरता विश्वविख्यात है। लेकिन शांति का प्रस्ताव रखने में फ्रांसीसी राजनीतिज्ञों ने उससे भी बड़ी जो बहादुरी बतलाई है उसे भी दुनिया को जान लेना चाहिए। मेरे खयाल में फ्रांसीसी राजनीतिज्ञों ने यह मार्ग सच्चे सैनिकों को शोभा देनेलायक पूरे समानपूर्ण तरीके से ग्रहण किया है। इसलिए मुझे आशा करनी चाहिए कि हेर हिटलर इसके लिए कोई अपमानपूर्ण शर्ते न लगाकर यह दिखलायेगे कि हालाँकि वह लड़ निर्दयता के साथ सकते हैं मगर कम-से-कम शान्ति के लिए वह दयाहीनता से काम नहीं ले सकते।

अब हम फिर अपनी दलील पर आयें। विजय प्राप्त कर लेने पर हिटलर क्या करेंगे? क्या इतनी सारी सत्ता को वह पचा सकते हैं? व्यक्तिगत रूप में तो वह भी उसी तरह खाली हाथ इस दुनिया से जायेंगे जैसे कि सिकन्दर गये थे जो उनके बहुत प्राचीन पूर्ववर्ती नहीं हैं। जर्मनों के लिए वह एक शक्तिशाली साम्राज्य की मालिकी का आनन्द नहीं बल्कि टूटते हुए साम्राज्य को सँभालने का भारी बोझ छोड़ जायेंगे, क्योंकि सब जीते हुए राष्ट्रों को वे सदा-सर्वदा पराधीन नहीं बनाये रख सकते, और इस बात में भी मुझे सन्देह है कि भावी पीढ़ी के जर्मन उन कामों में शुद्ध गर्वानुभव करेंगे जिनके लिए कि वे हिटलरशाही को जिम्मेदार ठहरायेगे। हिटलर की इज्जत वे प्रतिभाशाली, वीर,