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हरेक अंग्रेज़ के प्रति

१८६६ में मैंने दक्षिण अफूीका में अग्रेजों के नाम एक अपील निकाली थी। वह अपील वहाँ के मजदूरों और व्यापारीवर्ग के हिन्दुस्तानियों की खातिर निकाली थी। उसका असर भी हुआ था। उस अपील का हेतु कितने ही महत्त्व का क्यों न रहा हो, मगर मेरी नजर में आज की इस अपील के हेतु के सामने वह तुच्छ था। मेरी हरेक अंग्रेज से-चाहे वह दुनिया के किसी भी हिस्से में हो यह प्रार्थना है कि वह राष्ट्रों के परस्पर के ताल्लुक़ात और दूसरे मामलों का फैसला करने के लिए युद्ध का मार्ग छोड़कर अहिंसा का मार्ग स्वीकार करें। आपके राजनेताओं ने यह घोषणा की है कि यह युद्ध प्रजातन्त्र के असूल की रक्षा के लिए लड़ा जा रहा है। युद्ध की न्याययुक्तता सिद्ध करने के लिए और भी बहुत-से ऐसे कारण दिये गये हैं। आप वह सब अच्छी तरह जानते हैं।

मैं आपसे यह कहता हूँ कि इस युद्ध के समाप्त होने पर जीत चाहे किसी भी पक्ष की हो, प्रजातन्त्र का कहीं नामोनिशान भी