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हरेक अंग्रेज के प्रति


करें। मैं चाहता हूँ कि आप अपनी और मनुष्यजाति की रचा के लिए मौजूदा हथियारों को निकम्मा समझकर फेंक दें। आप हेर हिटलर और सिन्योर मुसोलिनी को बुलायें कि आइए हमारे इस कई खूबसूरत इमारतोंवाले सुन्दर द्वीप पर आप कब्जा कर लीजिए। आप यह सब उन्हें दे देंगे, मगर अपना दिल और आत्मा उन लोगों को हर्गिज नहीं देंगे। ये साहबान आपके घर पर कब्जा करना चाहें, तो आप अपने घरों को खाली कर देंगे। अगर वे लोग आपको बाहर भी न जाने दें, तो आप सब-के-सब मर्द, औरत और बच्चे, कट जायेंगे, मगर उनकी अधीनता स्वीकार नहीं करेंगे। इस तरीके को मैंने अहिंसक असहयोग का नाम दिया है, और हिन्दुस्तान में यह तरीका काफ़ी हदतक सफल भी हुआ है। हिन्दुस्तान में श्रापके नुमाइन्दे मेरे इस दावे से इन्कार कर सकते हैं। अगर वे ऐसा करेंगे, तो मुझे उनपर दया आयेगी। वे आपसे कह सकते हैं कि हमारा असहयोग पूरी तरह अहिंसात्मक नहीं था; उसकी जड़ में द्वष था। अगर वे लोग यह गवाही देंगे, तो मैं इससे इन्कार नहीं करूंगा। अगर हमारा असहयोग पूरी तरह हिंसात्मक रहता, अगर तमाम असहयोगियों के मन में आपके प्रति प्रेम भरा रहता, तो मैं दावे से कहता हूँ कि आप लोग जिस हिन्दस्तान के आज स्वामी हैं, उसके शिष्य होते, आप हम लोगों की अपेक्षा बहुत ज्यादा कुशलता से इस हथियार को सम्पूर्ण बनाते और जर्मनी, इटली और उनके साथियों का इसके द्वारा सामना करते। तब यूरोप का