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युद्ध और अहिंसा


पिछले चन्द महीने का इतिहास दूसरी ही तरह लिखा गया होता। यूरोप की भूमि पर निर्दोष रक्त की नदियाँ न बहतीं, इतने छोटे-छोटे राष्ट्रों की हत्या न होती और द्वेष से यूरोप के लोग आज अन्घे न बन जाते। यह एक ऐसे आदमी की अपील है, जो अपने काम को अच्छी तरह जानता है। मैं पचास वर्ष से लगातार एक वैज्ञानिक की बारीकी से अहिंसा के प्रयोग और उसकी छिपी हुई शक्तियों की शोधने का प्रयत्न कर रहा हूँ। मैंने जीवन के हरेक क्षेत्र में अहिंसा का प्रयोग किया है। घर में संस्थाओं में, आर्थिक और राजनैतिक क्षेत्र में, एक भी ऐसे मौक़े का मुझे स्मरण नहीं है कि जहाँ अहिंसा निष्फल हुई हो। जहाँपर कभी निष्फलता सी देखने में आई, मैंने उसका कारण अपनी अपूर्णता को समझा है। मैंने अपने लिए कभी सम्पूर्णता का दावा नहीं किया। मगर मैं यह दावा करता हूँ कि मुझे सत्य, जिसका दूसरा नाम ईश्वर है, के शोध की लगन लगी रही है। इस शोध के सिलसिले में अहिंसा मेरे हाथ आई। इसका प्रचार मेरे जीवन का उद्देश्य है। मुझे अगर जिन्दा रहने में कोई रस है, तो वह सिर्फ़ इस उद्देश को पूरा करने के लिए ही है।

मैं दावा करता हूँ कि मैं ब्रिटेन का आजीवन और नि:स्वार्थ मित्र रहा हूँ। एक वक्त ऐसा था कि मैं आपके साम्राज्य पर भी मुग्ध था। मैं समझता था कि आपका राज्य हिन्दुस्तान को फायदा पहुँचा रहा है। मगर जब मैंने देखा कि वस्तु-स्थिति तो दूसरी ही है, इस रास्ते से हिन्दुस्तान का भला नहीं हो सकता,