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हरेक अंग्रेज के प्रति


तब मैंने अहिंसक तरीके से साम्राज्यवाद का सामना करना शुरू किया और आज भी कर रहा हूँ। मेरे देश की क्रिस्मत में आखिर कुछ भी लिखा हो, आप लोगों के प्रति मेरा प्रेम वैसा ही कायग है और रहेगा। मेरी अहिंसा सारे जगत् के प्रति प्रेम माँगती है और आप उस जगत् का कोई छोटा हिस्सा नहीं है। आप लोगों के प्रति मेरे इस प्रेम ने ही मुभ से यह निवेदन लिखवाया है। ईश्वर मेरे एक-एक शब्द की शक्ति दे। उसीके नाम से मैंने यह लिखना शुरू किया था और उसी के नाम से बन्द करता हूँ। ईश्वर श्रापके राजनेताओं को समभ और हिम्मत दे कि वे मेरी प्रार्थना का उचित प्रतिफल दे सकें। मैंने वाइसराय साहब से कहा है कि अगर ब्रिटिश सरकार को ऐसा लगे कि मेरी इस अपील के हेतु को आगे बढ़ाने के लिए मेरी मदद उन्हें उपयोगी होगी, तो मेरी सेवायें उनके आगे हाजिर हैं।

'हरिजन सेवक': १३ जुलाई १९४०