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मुझे पश्चात्ताप नहीं है

हरेक अंग्रेज के प्रति वह निवेदन लिखकर मैंने एक और बोझ अपने सिर पर ले लिया है। बिना ईश्वर की मदद के मैं इसे उठाने के लायक नहीं हूँ। अगर उसकी इच्छा होगी कि मैं इसे उठाऊँ, तो वह उठाने की मुझे शक्ति भी देगा। मैंने अपने लेख जब अधिकतर गुजराती में ही लिखने का निश्चय किया, तब मुझे यह पता नहीं था कि मुझे वह निवेदन लिखना होगा। उसे लिखने का विचार तो एकाएक ही उठा, और उसके साथ-ही उसे लिखने की हिम्मत भी आ गई। कई अंग्रेज और अमेरिकन मित्र बहुत दिनों से आपह कर रहे थे कि मैं उनको रास्ता बताऊँ, पर में उनके आग्रह के वश नही हुआ था। मुझे कुछ सूझता नहीं था। मगर वह निवेदन लिखने के बाद, अब मुझे उसकी जो प्रतिक्रिया हो रही है उसका पीछा करना ही चाहिए। अनेक लोग मुझे इस सम्बन्ध में पत्र लिख रहे हैं। सिवाय एक गुस्से से भरे तार के, अंग्रेजों ने उस निवेदन की मित्रभाव से ही आलोचना की है, और कुछ अंग्रेजों ने तो