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मुझे पश्चात्ताप नहीं है


उसकी क़द्र भी की है।

वायसराय साहब ने मेरी तजवीज ब्रिटिश सरकार के सामने रखी, इसके लिए मैं उनका आभारी हूँ। इस बारे में जो पत्रव्यवहार हुआ है, वह या तो पाठकों ने देख लिया होगा, या इस श्रङ्क में देखेंगे। यद्यपि मेरे निवेदन के इससे बेहतर उत्तर की ब्रिटिश सरकार से आशा नहीं की जा सकती थी, तो भी मैं इतना कह दूँ, कि ब्रिटिश सरकार के विजय पाने तक लड़ते जाने के निश्चय के ज्ञान ने ही मुझसे यह निवेदन लिखाया था। इसमें शक नहीं कि यह निश्चय स्वाभाविक है, और सर्वोत्तम ब्रिटिश परम्परा के योग्य भी है: मगर इस निश्चय के अन्दर भयंकर हत्याकांड निहित है। इस चीज के जानते हुए लोगों की अपने ध्येय की प्राप्ति के लिए कोई बेहतर और ज्यादा वीरतापूर्ण रास्ता ढंढ़ना चाहिए, क्योंकि शान्ति की विजय युद्ध की विजय से अधिक प्रभावशाली होती है। अंग्रेज अहिंसक रास्ता अखत्यार करते, तो इसका अर्थ यह नहीं था कि वह चुपचाप निन्दनीय तरीके से जर्मनी के सामने झुक जाते। अहिंसा का तरीका शत्रु को हक्का-बका बनाकर रख देता, और युद्ध की सारी आधुनिक कला और चालबाजियों को निकम्मा बना देता। नया विश्व-तन्त्र भी, जिसके कि आज सब स्वप्न देख रहे हैं, इसमें से निकल आता। मैं मानता हूँ कि अन्त तक युद्ध लड़कर अथवा दोनों पत्न अन्त में थकान के मारे कैसी भी कच्ची-पक्की सुलह करले, उसमें से नया विश्व-तन्त्र पैदा करना असम्भव है।