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युद्ध और अहिंसा


मित्र चाहते थे कि मैं कोई ऐसा क़दम उठाऊँ। मगर उन्हें मेरी यह बात पसन्द आई है, यह मेरे लिए चाहे कितनी ही खुशी की बात क्यों न हो, मैं इसपर सन्तोष मानकर बैठना नहीं चाहता। मेरे पास इन अंग्रेज भाई की टीका की कीमत काफ़ी है। इस ज्ञान से मुझे सावधान होना चाहिए। अपने विचारो को प्रकट करने के लिए शब्दों को और ज्यादा सावधानी से चुनना चाहिए। मगर नाराजगी के डर से, भले ही वह नाराजगी प्रिय-से-प्रिय मित्र की क्यों न हो, जो धर्म मुझे स्पष्ट नजर आता है, उससे मैं हट नहीं सकता। यह निवेदन निकालने का धर्म इतना जबरदस्त और आवश्यक था कि मेरे लिए उसे टालना अशक्य था। मैं यह लेख इस वक्त लिख रहा हूँ-यह बात जितनी निश्चित है, उतनी ही निश्चित यह बात भी है कि जिस ऊँचाई पर पहुँचने का मैने ब्रिटेन को निमन्त्रण दिया है, किसी न-किसी दिन दुनिया को वहाँ पहुँचना ही है। मेरी श्रद्धा है कि जल्दी ही दुनिया जब इस शुभ दिन को देखेगी, तब हर्ष के साथ वह मेरे इस निवेदन को याद करेगी। मैं जानता हूँ कि वह दिन इस निवेदन से नजदीक आ गया है।

अंग्रेजों से अगर यह प्रार्थना की जाये कि वे जितने बहादुर आज हैं उससे भी ज्यादा बहादुर और अच्छे बनें, तो इसमें किसी भी अंग्रेज को बुरा क्यों लगे? ऐसा करने के लिए वह अपने को असम्रर्थ बता सकता है, मगर उसके दैवी स्वभाव को जागृत करने के लिए निवेदन उसे बुरा क्यों लगे?