भ्रमरगीत-सार/३०-हमतें हरि कबहूँ न उदास

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भ्रमरगीत-सार  (1926) 
द्वारा रामचंद्र शुक्ल

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राग धनाश्री
हमतें हरि कबहूँ न उदास।

राति-खवाय पिवाय अधररस सो क्यों बिसरत ब्रज को वास॥
तुमसों प्रेमकथा को कहिबो मनहुँ काटिबो घास।
बहिरो तान-स्वाद कह जानै, गूँगो बात-मिठास॥
सुनु री सखी, बहुरि फिरि ऐहैं वे सुख बिबिध विलास।
सूरदास ऊधो अब हमको भयो तेरहों मास[१]॥३०॥

  1. तेरहों मास भयो=अवधि बीत गई, बहुत दिन हो गए।