भ्रमरगीत-सार/३३९-आए नँदनन्दन के नेव

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राग सारंग

आए नँदनन्दन के नेव[१]
गोकुल आय जोग बिस्तार्‌यो, भली तुम्हारी टेव॥
जब बृन्दाबन रास रच्यो हरि तबहि कहाँ तू हेव[२]
अब जुवतिन को जोग सिखावत, भस्म अधारी सेव॥
हम लगि तुम क्यों यह मत ठान्यो ज्यों जोगिन को भोग[३]
सूरदास प्रभु सुनत अधिक दुख, आतुर बिरह-बियोग॥३३९॥

  1. नेव=नायब, मंत्री।
  2. हेव=ह्यो, तू था।
  3. जोगिन को भोग=जैसे योगियों के लिए भोग वैसे ही हमारे लिए योग।