भ्रमरगीत-सार/३४४-स्याम को यहै परेखो आवै

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राग मलार

स्याम को यहै परेखो आवै[१]
कत वह प्रीति चरन जावक कृत[२], अब कुब्जा मन भावै॥
तब कत पानि धर्‌यो गोबर्द्धन, कत ब्रजपतिहि छड़ावै?
कत वह बेनु अधर मोहन धरि लै लै नाम बुलावै?
तब कत लाड़ लड़ाय लड़ैते हँसि हँसि कण्ठ लगावै?
अब वह रूप अनूप कृपा करि नयनन हू न दिखावै॥
जा मुख-सँग समीप रैनि-दिन सोइ अब जोग सिखावै।
जिन मुख दए अमृत रसना भरि सो कैसे विष प्यावै?
कर मीड़ति पछताति हियो भरि, क्रम क्रम मन समुझावै।
सूरदास यहि भाँति बियोगिनी तातें अति दुख पावै॥३४४॥

  1. यहै परेखो आवै=यही बात मन में सोचती हूँ।
  2. कृत=किया, बनाया।