भ्रमरगीत-सार/३४५-सखी री! मो मन धोखे जात

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सखी री! मो मन धोखे जात।
ऊधो कहत, रहत हरि मधुपुरि, गत आगत[१] न थकात॥

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इत देखौं तौ आगे मधुकर मत्त-न्याय सतरात[२]
फिरि चाहौं[३] तौ प्राननाथ उत सुनत कथा मुसकात॥
हरि साँचे ज्ञानी सब झूठे जे निर्गुन-जस गात[४]
सूरदास जेहि सब जग डहक्यो[५] ते इनको डहकात॥३४५॥

  1. गत आगत=आते जाते।
  2. मत-न्याय सतरात=पागल की तरह बड़बड़ाता है।
  3. फिरि चाहौं=फिरकर जो मथुरा की ओर देखती हूँ (मन बराबर मथुरा आता जाता है)।
  4. जस गात=यश गाते हैं।
  5. डहक्यो=ठगा, धोखे में डाला माया द्वारा।