भ्रमरगीत-सार/३७३-मैं जान्यो मोको माधव हित है कियो

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राग सोरठ
मैं जान्यो मोको माधव हित है कियो।
अति आदर अलि ज्यों मिलि कमलहि मुख-मकरंद लियो॥

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बरु वह भली पूतना जाको पय-संग प्रान पियो।
मनमधु अँचै निपट सूने तन यह दुख अधिक दियो॥
देखि अचेत अमृत-अवलोकनि, चलि जु सींचि हियो।
सूरदास प्रभु वा अधार के नाते परत जियो॥३७३॥