भ्रमरगीत-सार/३८५-उन में पाँच दिवस जो बसिये

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राग केदारो

उन में पाँच दिवस जो बसिये।
नाथ! तिहारी सौं जिय उमगत, फेरि अपनपो कस ये?
वह लीला बिनोद गोपिन के देखे ही बनि आवै।
मोको बहुरि कहाँ वैसो सुख, बड़भागी सो पावै॥
मनसि, बचन, कर्मना, कहत हौं नाहिंन कछु अब राखी।
सूर काढ़ि डार्‌यो हौं ब्रज तें दूध-माँझ की माखी[१]॥३८५॥

  1. दूध...माखी=दूध की मक्खी की तरह निकाल दिया।