रामनाम/३०
अिस पुण्य-नामका हृदयसे जप करनेके लिअे जो जरूरी शर्ते है, अुन्हे मै यहा नही दोहराअूगा।
चरकका प्रमाण अुन्ही लोगोके लिअे फायदेमन्द है, जो रामनाममे श्रद्धा और विश्वास रखते है। दूसरे लोगोको हक है कि वे अुस पर विचार न करे।
बच्चे गैर-जिम्मेदार होते है। बेशक रामनाम अुनके लिअे नही है। वे तो मा-बापकी दया पर जीनेवाले बेबस जीव है। अिससे हमे पता चलता है कि मा-बापकी बच्चोके और समाजके प्रति कितनी भारी जिम्मेदारी है। मै अुन मा-बापोको जानता हू, जिन्होने अपने बच्चोके रोगोके बारेमे लापरवाही की है, और यहा तक समझ लिया है कि हमारे रामनाम लेनेसे ही वे अच्छे हो जायगे।
आखिरमे, सब दवाअिया पच महाभूतोसे बनी है, यह दलील देना विचारोकी अराजकता जाहिर करता है। मैने सिर्फ अिसलिअे अुसकी तरफ, अिशारा किया है कि वह दूर हो जाय।
हरिजनसेवक, २८-४-१९४६
आयुर्वेद और कुदरती अुपचार
अीश्वरकी स्तुति और सदाचारका प्रचार हर तरहकी बीमारीको रोकनेका अच्छे-से-अच्छा और सस्ते-से-सस्ता अिलाज है। मुझे अिसमे जरा भी शक नही। अफसोस अिस बातका है कि वैद्य, हकीम और डॉक्टर अिस सस्ते अिलाजका अुपयोग ही नही करते। बल्कि हुआ यह है कि अुनकी किताबोमे अिस अिलाजकी कोई जगह ही नही रही, और कही है तो अुसने जन्तर-मन्तरकी शकल अख्तियार करके लोगोको वहमके कुअेमे ढकेला है। अीश्वरकी स्तुति या रामनामको वहमसे कोअी निस्बत नही। यह कुदरतका सुनहला कानून है। जो अिस पर अमल करता है, वह बीमारीसे बचा रहता है। जो अमल नही करता, वह बीमारियोसे घिरा रहता है। तन्दुरुस्त रहनेका जो कानून है, वही बीमार होनेके बाद बीमारीसे छुटकारा पानेका भी कानून है। सवाल यह होता है कि जो रामनाम जपता है और नेकचलनीसे रहता है, अुसको ब़ीमारी हो ही क्यो? सवाल ठीक ही है। आदमी स्वभावसे ही अपूर्ण है। समझदार आदमी पूर्ण बननेकी कोशिश करता है। लेकिन पूर्ण वह कभी बन नही पाता, अिसलिअे अनजाने गलतिया करता है। सदाचारमे अीश्वरके बनाये सभी कानून समा जाते है, लेकिन अुसके सब कानूनोको जाननेवाला सपूर्ण पुरुष हमारे पास नही है। मसलन्, अेक कानून यह है कि हदसे ज्यादा काम न किया जाय। लेकिन कौन बतावे कि यह हद कहा खतम होती है? यह चीज तो बीमार पडने पर ही मालूम होती है। मिताहार और युक्ताहार यानी कम और जरूरतके मुताबिक खाना कुदरतका दूसरा कानून है। कौन बतावे कि अिसकी हद कब लाघी जाती है? मैं कैसे जानू कि मेरे लिए युक्ताहार क्या है? अैसी तो कअी बाते सोची जा सकती है। अिस सबका निचोड यही है कि हर आदमीको अपना डॉक्टर खुद बनकर अपने अूपर लागू होनेवाले कानूनका पता लगा लेना चाहिये। जो अिसका पता लगा सकता है और उस पर अमल कर सकता है, वह १२५ बरस जीयेगा ही।
श्री वल्लभराम वैद्य पूछते है कि मामूली मसाले और पाक वगैरा चीजे कुदरती अिलाजमे शुमार की जा सकती है या नही? यह एक बडे कामका सवाल है। डॉक्टर दोस्तोका यह दावा है कि वे पूरी तरह कुदरती अिलाज करनेवाले है। क्योकि दवाये जितनी भी है, सब कुदरतने ही बनाअी है। डॉक्टर तो अुनकी नअी मिलावटे भर करते है। अिसमे बुरा क्या है? अिस तरह हर चीज पेश की जा सकती है। मैं तो यही कहूगा कि रामनामके सिवा जो कुछ भी किया जाता है, वह कुदरती अिलाजके खिलाफ है। अिस मध्यबिन्दुसे हम जितने दूर हटते है, अुतने ही असल चीजसे दूर जा पडते है। अिस तरह सोचते हुअे मै यह कहूगा कि पाच महाभूतोका असल अुपयोग कुदरती अिलाजकी हद है। अिससे आगे बढनेवाला वैद्य अपने अिर्द-गिर्द जो दवाये अुगती हो या अुगाअी जा सके, अुनका अिस्तेमाल सिर्फ लोगोके भलेके लिए करे, पैसे कमानेके लिए नही, तो वह भी कुदरती अिलाज करनेवाला कहला सकता है। ऐसे वैद्य आज कहा है? आज तो वे पैसा कमानेकी होडाहोडीमे पडे है। छानबीन और खोज-अीजाद कोअी करता नही। अुनके आलस और लोभकी वजहसे आयुर्वेद आज कगाल बन गया है।
हरिजनसेवक, १९-५-१९४६ २७
अुरुळीकांचनमे
पहले ही दिन गावके बाहर सामूहिक प्रार्थना की गअी और दूसरी जगहोकी तरह यहा भी सबके अेक साथ रामधुन गानेका रिवाज शुरू किया गया। प्रार्थनामे जो भजन गाया गया था, अुसका आधार लेकर गाधीजीने वहा आये हुअे गावके लोगोके सामने शरीरकी बीमारियोको मिटानेवाली बढियासे बढिया कुदरती दवाके रूपमे रामनाम पेश किया "अभी हमने जो भजन गाया, अुसमे भक्त कहता है 'हरि! तुम हरो जनकी पीर।' यानी हे भगवान तू अपने भक्तोका दुख दूर कर। अिसमे जिस दुखकी बात कही गअी है, वह सब तरहके दुखोसे सम्बन्ध रखती है। मन या तनकी किसी खास बीमारीकी चर्चा अिसमे नही है।" फिर गाधीजीने लोगोको कुदरती अिलाजकी सफलताके नियम बताये "रामनामके प्रभावका आधार अिस बात पर है कि आपकी अुसमे सजीव श्रद्धा है या नही। अगर आप गुस्सा करते है, सिर्फ शरीरकी हिफाजतके लिअे नहीं, बल्कि मौज-शौकके लिअे खाते और सोते है, तो समझिये कि आप रामनामका सच्चा अर्थ नही जानते। अिस तरह जो रामनाम जपा जायगा, अुसमे सिर्फ होठ हिलेगे, दिल पर अुसका कोअी असर न होगा। रामनामका फल पानेके लिअे आपको जपते समय अुसमे लीन हो जाना चाहिये, और अुसका प्रभाव आपके जीवनके तमाम कामोमे दिखाई पडना चाहिये।"
पहले बीमार
दूसरे दिन सुबहसे बीमार आने लगे। कोअी ३० होगे। गाधीजीने अुनमे से पाच या छहको देखा और अुन सबकी बीमारीके प्रकारको देखकर थोडे हेरफेरके साथ सबको अेकसे ही अिलाज सुझाये। मसलन्, रामनामका जप, सूर्यस्नान, बदनको जोरसे रगडना या घिसना, कटिस्नान, दूध, छाछ, फल, फलोका रस और पीनेके लिअे साफ और ताजा पानी। शामकी प्रार्थना-सभामे अुन्होने अपने विषयको समझाते हुझे कहा "सचमुच यह पाया गया है कि मन और शरीरकी तमाम आधि-व्याधियोका एक ही समान कारण है। अिसलिअे अुन सबका अेक ही आम अिलाज भी हो, तो अुसमे अचरजकी कोअी बात नही। रोगोकी तरह अिलाज भी अेक ही ढगके हो सकते है। अिसलिअे आज सुबह मेरे पास जितने बीमार आये थे, अुन सबको मैने रामनामके साथ करीब-करीब अेकसा ही अिलाज सुझाया था। लेकिन अपने रोजमर्राके जीवनमे जब शास्त्र हमे अनुकूल नहीं होते, तो हम अुनके वचनोका मनचाहा अर्थ निकालकर अपना काम चला लेते है। मनुष्यने अिस कलाका अच्छा विकास कर लिया है। हमने अपने मन पर अेक अैसे भ्रम या वहमको सवार होने दिया है कि शास्त्रोका अुपयोग सिर्फ अिसलिअे है कि अगले जन्ममे जीवका आध्यात्मिक कल्याण हो और धर्मका पालन इसलिए करना है कि मरनेके बाद पुण्यकी यह कमाअी काम आ सके। मेरा मत अैसा नही है। अगर इस जीवनके व्यवहारमे धर्मका कोअी अुपयोग न हो, तो अगले जन्ममे मुझे अुससे क्या निस्बत हो सकती है?
"अिस दुनियामे बिरला ही कोअी अैसा होगा, जो शरीर और मनकी सभी बीमारियोसे बिलकुल बरी हो। तन और मनकी कुछ बीमारिया तो अैसी है, जिनका इस दुनियामे कोअी इलाज ही नही। जैसे, अगर शरीरका कोई अग खडित हो गया हो, तो उसको फिरसे पैदा कर देनेका चमत्कार रामनाममे कहासे आये? लेकिन उसमे इससे भी बडा चमत्कार कर दिखानेकी ताकत है। वह अग-भग या बीमारियोके बावजूद सारी जिन्दगी अटूट शान्तिके[१] साथ बितानेकी शक्ति देता है और अुमर पूरी होने पर जिस जगह सबको जाना पडता है, वहा जानेकी बारी आने पर मौतके दुखको और चिताकी विजयके डरको मिटा देता है, यह क्या कोई छोटा-मोटा चमत्कार है? जब आगे-पीछे मौत आने ही वाली है, तो वह कब आयेगी, अिस फिकरमे हम पहलेसे ही क्यो मरे?"
कुदरती इलाजके मूल तत्त्व
"मनुष्यका भौतिक शरीर पृथ्वी, पानी, आकाश, तेज और वायु नामके पांच तत्त्वोसे बना है, जो पच महाभूत कहलाते है। अिनमे से तेज तत्त्व शरीरको शक्ति पहुचाता है। आत्मा उसको चैतन्य प्रदान करती है। "अिन सबमे सबसे जरूरी चीज हवा है। आदमी बिना खाये कअी हफ्तो तक जी सकता है, पानीके बिना भी वह कुछ घण्टे बिता सकता है, लेकिन हवाके बिना तो कुछ ही मिनटोमे अुसकी देहका अन्त हो सकता है। अिसीलिअे अीश्वरने हवाको सबके लिए सुलभ बनाया है। अन्न और पानीकी तगी कभी-कभी पैदा हो सकती है, हवाकी कभी नही। अैसा होते हुअे भी हम बेवकूफोकी तरह अपने घरोके अन्दर खिडकी और दरवाजे बन्द करके सोते है और अीश्वरकी प्रत्यक्ष प्रसादी-सी ताजी और साफ हवासे फायदा नही अुठाते। अगर चोरोका डर लगता है, तो रातमे अपने घरोके दरवाजे और खिडकिया बन्द रखिये, लेकिन खुद अपनेको उनमे बन्द रखनेकी क्या जरूरत है?
"साफ और ताजी हवा पानेके लिअे आदमीको खुलेमें सोना चाहिये। लेकिन खुलेमे सोकर धूल और गन्दगीसे भरी हवा लेनेका कोअी मतलब नही अिसलिअे आप जिस जगह सोये, वहा धूल और गन्दगी नही होनी चाहिये। धूल और सरदीसे बचनेके लिअे कुछ लोग सिरसे पैर तक ओढ लेनेके आदी होते है। यह तो बीमारीसे भी बदतर अिलाज हुआ। दूसरी बुरी आदत मुहसे सास लेनेकी है। नथनोकी राह फेफडोमे पहुचनेवाली हवा छनकर साफ हो जाती है, और उसे जितना गरम होना चाहिये अुतनी गरम भी वह हो लेती है।
"जो आदमी जहा चाहे वहा और जिस तरह चाहे अुस तरह थूक कर, कूडा-करकट डालकर या गन्दगी फैलाकर या दूसरे तरीकोसे हवाको गन्दी करता है, वह कुदरतका और मनुष्योका गुनहगार है। मनुष्यका शरीर अीश्वरका मदिर है। उस मन्दिरमे जानेवाली हवाको जो गन्दी करता है, वह मन्दिरको भी बिगाडता है। अुसका रामनाम लेना फजूल है।"
हरिजनसेवक, ७-४-१९४६
- ↑ रामनाम जैसी शान्ति प्रदान करनेवाली दुसरी कोअी शक्ति नहीं है।––प्रेस रिपोर्ट, १०-१-१९४६